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BSEB Class 12th Physics Important Definition

SSC JINEDPUR
8227045409

भौतिकी की महत्वपूर्ण परिभाषाएँ

कृपया यथा संभव अपने नोट बुक का परिभाषा ही लिखें...

1. स्थिर वैद्युतकी: स्थिर आवेशों के बीच विद्युतीय बलों का अध्ययन स्थिर वैद्युतिकी कहलाता है।
2. घर्षण वैद्युतिकी: घर्षण द्वारा आवेश उत्पन्न करने की प्रक्रिया से सम्बन्धित अध्ययन।
3. आवेशों का क्वाण्टीकरण: विद्युत आवेश सदैव छोटे-छोटे अविभाज्य इकाइयों के गुणज के रूप में पाया जाता है।
4. कूलॉम का नियम: दो स्थिर बिंदु आवेशों के बीच बल उनके गुणनफल के समानुपाती और दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
5. बलों के अध्यारोपण का सिद्धान्त: किसी बिंदु पर कई आवेशों द्वारा लगने वाला कुल बल प्रत्येक व्यक्तिगत बल का सदिश योग होता है।
6. सदिश के घटक: किसी सदिश को दो (या अधिक) दिशा-विशिष्ट भागों में विभाजित करना सदिश के घटक कहलाता है।
7. आवेशों का रैखिक घनत्व: किसी चालक की प्रति एकांक लम्बाई पर उपस्थित आवेश की मात्रा।
8. पृष्ठीय घनत्व: किसी चालक के प्रति एकांक क्षेत्रफल पर उपस्थित आवेश की मात्रा।
9. आयतन घनत्व: किसी वस्तु के प्रति एकांक आयतन में उपस्थित आवेश की मात्रा।
10. विद्युत क्षेत्र: किसी आवेश के चारों ओर का वह क्षेत्र जहाँ कोई अन्य आवेश आकर्षण या प्रतिकर्षण बल का अनुभव करता है।
11. विद्युत क्षेत्र की तीव्रता: विद्युत क्षेत्र में किसी बिंदु पर रखे एकांक धन आवेश पर लगने वाला बल।
12. विद्युतीय द्विध्रुव: जब दो बराबर और विपरीत आवेश एक दूसरे से बहुत कम दूरी पर स्थित होते हैं, तो इस निकाय को विद्युत द्विध्रुव कहते हैं।
13. विद्युतीय द्विध्रुव आघूर्ण: द्विध्रुव के किसी एक आवेश का परिमाण और उनके बीच की दूरी के गुणनफल को द्विध्रुव आघूर्ण कहते हैं।
14. अक्षीय स्थिति: विद्युत द्विध्रुव के दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा पर स्थित कोई बिंदु।
15. निरक्षीय स्थिति: विद्युत द्विध्रुव के केंद्र से होकर जाने वाली और अक्ष के लंबवत रेखा पर स्थित कोई बिंदु।
16. विद्युत बल रेखा: विद्युत क्षेत्र में खींची गई वह काल्पनिक रेखा जिस पर एक स्वतंत्र एकांक धन आवेश चलता है।
17. विद्युत विभव: एकांक धन आवेश को अनंत से विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य।
18. विभवान्तर: एकांक धन आवेश को विद्युत क्षेत्र में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया गया कार्य।
19. समविभवी तल: विद्युत क्षेत्र में खींचा गया वह तल जिसके प्रत्येक बिंदु पर विभव का मान समान होता है।
20. विद्युतीय स्थितिज ऊर्जा: आवेशों के किसी निकाय को अनंत से लाकर उस निकाय की रचना करने में किया गया कार्य।
21. गॉस का प्रमेय: किसी बंद पृष्ठ से गुजरने वाला कुल विद्युत फ्लक्स उस पृष्ठ द्वारा घिरे कुल आवेश का 1/ε₀ गुना होता है।
22. विद्युत फ्लक्स: किसी सतह से लंबवत गुजरने वाली कुल विद्युत बल रेखाओं की संख्या।
23. संधारित्र: एक ऐसी युक्ति जो चालक के आकार में परिवर्तन किए बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित कर सकती है।
24. संग्राहक प्लेट: संधारित्र की वह प्लेट जिसे आवेश दिया जाता है।
25. संघनक प्लेट: संधारित्र की वह प्लेट जिसे पृथ्वी से जोड़ा जाता है।
26. संधारित्र का सिद्धान्त: किसी आवेशित चालक के समीप पृथ्वी से जुड़ा एक अन्य चालक लाने पर पहले चालक की धारिता बढ़ जाती है।
27. समान्तर प्लेट संधारित्र: इसमें धातु की दो समान्तर प्लेटें होती हैं जिनके बीच कोई परावैद्युत माध्यम होता है।
28. गोलीय संधारित्र: दो संकेन्द्री खोखले गोलों से बना संधारित्र।
29. बेलनाकार संधारित्र: दो समाक्षीय बेलनाकार चालकों से बना संधारित्र।
30. परावैद्युत पदार्थ: वे कुचालक पदार्थ जो विद्युत क्षेत्र में रखे जाने पर ध्रुवित हो जाते हैं।
31. संधारित्र की स्थितिज ऊर्जा: किसी संधारित्र को आवेशित करने में किया गया कुल कार्य, जो उसमें ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
32. उभयनिष्ठ विभव: जब दो आवेशित चालकों को जोड़ा जाता है, तो आवेश के पुनर्वितरण के बाद उनका जो समान विभव होता है।
33. संधारित्र का समूहण: दो या दो से अधिक संधारित्रों को एक साथ जोड़कर एक एकल संधारित्र की तरह उपयोग करना।
34. श्रेणीक्रम समूहण: जब संधारित्रों को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि प्रत्येक पर आवेश समान हो।
35. समान्तरक्रम समूहण: जब संधारित्रों को इस प्रकार जोड़ा जाता है कि प्रत्येक पर विभवान्तर समान हो।
36. ऊर्जा घनत्व: संधारित्र के एकांक आयतन में संचित ऊर्जा।
37. धारा वैद्युतकी: भौतिकी की वह शाखा जिसमें गतिमान आवेशों (विद्युत धारा) का अध्ययन किया जाता है।
38. विद्युत धारा: आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं।
39. धारा घनत्व: किसी चालक के प्रति एकांक अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल से बहने वाली धारा।
40. अनुगमन वेग: विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में किसी चालक में इलेक्ट्रॉनों का औसत वेग।
41. प्रतिरोध: किसी चालक का वह गुण जो उसमें प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा का विरोध करता है।
42. आन्तरिक प्रतिरोध: किसी सेल के अंदर विद्युत-अपघट्य द्वारा धारा के मार्ग में लगाया गया प्रतिरोध।
43. ओम का नियम: यदि किसी चालक की भौतिक अवस्थाएँ स्थिर रहें, तो उसके सिरों पर लगाया गया विभवान्तर उसमें प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है।
44. प्रतिरोधों का समूहण: परिपथ में वांछित प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए दो या अधिक प्रतिरोधों को जोड़ना।
45. श्रेणीक्रम समूहण: प्रतिरोधों का ऐसा संयोजन जिसमें प्रत्येक प्रतिरोध से समान धारा बहती है।
46. समान्तरक्रम समूहण: प्रतिरोधों का ऐसा संयोजन जिसमें प्रत्येक प्रतिरोध के सिरों पर विभवान्तर समान होता है।
47. सेल: एक युक्ति जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है।
48. विद्युत वाहक बल: एकांक आवेश को पूरे परिपथ (सेल सहित) में एक बार घुमाने में सेल द्वारा किया गया कार्य।
49. किरचॉफ का नियम: जटिल विद्युत परिपथों को हल करने के लिए दो नियम- संधि नियम और लूप नियम।
50. व्हीट स्टोन सेतु: चार प्रतिरोधों से बनी एक व्यवस्था जिसका उपयोग किसी अज्ञात प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिए किया जाता है।
51. संतुलित व्हीट स्टोन सेतु: सेतु की वह अवस्था जब गैल्वेनोमीटर में कोई विक्षेप नहीं होता।
52. सेलों का समूहण: परिपथ में अधिक धारा या वोल्टेज प्राप्त करने के लिए सेलों को जोड़ना।
53. श्रेणीक्रम समूहण: जब सेलों को इस प्रकार जोड़ा जाए कि एक सेल का ऋण ध्रुव दूसरे के धन ध्रुव से जुड़ा हो।
54. समान्तर क्रम समूहण: जब सभी सेलों के धन ध्रुव एक बिंदु पर और ऋण ध्रुव दूसरे बिंदु पर जुड़े हों।
55. मिश्रितक्रम समूहण: जब कुछ सेलों को श्रेणीक्रम में और ऐसी कई पंक्तियों को समांतर क्रम में जोड़ा जाता है।
56. विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव: जब किसी चालक से धारा प्रवाहित होती है, तो उसका गर्म हो जाना।
57. जूल के नियम: चालक में उत्पन्न ऊष्मा (H) प्रवाहित धारा के वर्ग (I²), प्रतिरोध (R) और समय (t) के समानुपाती होती है।
58. विद्युत शक्ति: किसी विद्युत परिपथ में ऊर्जा के क्षय होने की दर।
59. मीटर ब्रीज: व्हीटस्टोन सेतु के सिद्धांत पर आधारित एक उपकरण जो अज्ञात प्रतिरोध मापने के काम आता है।
60. विभवमापी: एक उपकरण जिसका उपयोग किसी सेल का विद्युत वाहक बल या किसी परिपथ के दो बिंदुओं के बीच विभवान्तर मापने के लिए किया जाता है।
61. विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव: जब किसी चालक में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो उसके चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।
62. ऑसटेड का प्रयोग: वह प्रयोग जिससे यह सिद्ध हुआ कि धारावाही चालक के पास रखी चुंबकीय सुई विक्षेपित हो जाती है।
63. ऐम्पियर के तैरने का नियम: चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने का एक नियम।
64. फ्लेमिंग वाम हस्त नियम: चुंबकीय क्षेत्र में रखे धारावाही चालक पर लगने वाले बल की दिशा ज्ञात करने का नियम।
65. दायाँ हाथ का हथेली नियम: धारावाही चालक पर लगने वाले चुंबकीय बल की दिशा ज्ञात करने का एक और नियम।
66. बायो सावर्ट नियम: किसी धारावाही चालक के एक छोटे खंड के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र का मान बताता है।
67. मैक्सवेल का दक्षिणावर्त हस्त नियम: सीधे धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात करने का नियम।
68. ऐम्पीयर का परिपथीय नियम: किसी बंद लूप के परितः चुंबकीय क्षेत्र का रेखीय समाकलन, उस लूप से गुजरने वाली कुल धारा का μ₀ गुना होता है।
69. परिनालिका: एक लंबी बेलनाकार कुंडली जिसमें पास-पास लिपटे हुए विद्युतरोधी तार होते हैं।
70. टोरॉइड: जब एक परिनालिका को वृत्ताकार रूप में मोड़ दिया जाता है।
71. साइक्लोट्रॉन: एक मशीन जो आवेशित कणों (जैसे प्रोटॉन) को बहुत उच्च ऊर्जा तक त्वरित करने के लिए उपयोग की जाती है।
72. धारामापी: एक उपकरण जो किसी परिपथ में विद्युत धारा की उपस्थिति का पता लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
73. सुग्राहिता: किसी धारामापी की सुग्राहिता यह बताती है कि वह कितनी छोटी धारा को माप सकता है।
74. पार्श्वपथ: धारामापी को उच्च धारा से बचाने के लिए उसके समांतर क्रम में लगाया गया कम प्रतिरोध का तार।
75. प्रकाश का परावर्तन: जब प्रकाश की किरण किसी चिकनी सतह से टकराकर उसी माध्यम में वापस लौट जाती है।
76. अभिसारी किरणपुंज: जब प्रकाश की सभी किरणें एक बिंदु पर मिलती हैं।
77. अपसारी किरणपुंज: जब प्रकाश की किरणें एक बिंदु से फैलती हुई प्रतीत होती हैं।
78. परावर्तन के नियम: 1. आपतन कोण परावर्तन कोण के बराबर होता है। 2. आपतित किरण, परावर्तित किरण और अभिलंब एक ही तल में होते हैं।
79. प्रतिबिम्ब: जब किसी वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें परावर्तन या अपवर्तन के बाद किसी बिंदु पर मिलती हैं या मिलती हुई प्रतीत होती हैं।
80. वास्तविक प्रतिबिम्ब: जब किरणें वास्तव में एक बिंदु पर मिलती हैं। इसे पर्दे पर प्राप्त किया जा सकता है।
81. काल्पनिक प्रतिबिम्ब: जब किरणें एक बिंदु से आती हुई प्रतीत होती हैं। इसे पर्दे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता।
82. दर्पण: एक चिकनी और पॉलिश की हुई सतह जो अपने पर पड़ने वाले अधिकांश प्रकाश को परावर्तित कर देती है।
83. समतल दर्पण: एक सपाट परावर्तक सतह वाला दर्पण।
84. परवलयिक दर्पण: एक दर्पण जिसकी परावर्तक सतह परवलय के आकार की होती है।
85. गोलीय दर्पण: एक दर्पण जिसकी परावर्तक सतह किसी खोखले गोले का भाग होती है।
86. उत्तल दर्पण: वह गोलीय दर्पण जिसकी बाहरी सतह परावर्तक होती है।
87. अवतल दर्पण: वह गोलीय दर्पण जिसकी भीतरी सतह परावर्तक होती है।
88. वक्रता केन्द्र: उस गोले का केंद्र जिसका दर्पण एक भाग है।
89. ध्रुव: दर्पण की परावर्तक सतह का मध्य बिंदु।
90. मुख्य अक्ष: दर्पण के ध्रुव और वक्रता केंद्र को मिलाने वाली सीधी रेखा।
91. दर्पण का द्वारक: दर्पण की परावर्तक सतह का व्यास।
92. वक्रता त्रिज्या: दर्पण के ध्रुव और वक्रता केंद्र के बीच की दूरी।
93. फोकस दूरी: दर्पण के ध्रुव और मुख्य फोकस के बीच की दूरी।
94. किरण आरेख: प्रकाश किरणों के पथ को दर्शाने वाला चित्र।
95. चिन्ह परिपाटी: दर्पण और लेंस द्वारा प्रतिबिंब निर्माण में दूरियों को मापने के लिए उपयोग किए जाने वाले नियमों का एक सेट।
96. आवर्धन क्षमता: प्रतिबिम्ब की ऊँचाई और वस्तु की ऊँचाई का अनुपात।
97. प्रकाश का अपवर्तन: जब प्रकाश की किरण एक पारदर्शी माध्यम से दूसरे में जाती है, तो उसका अपने पथ से विचलित हो जाना।
98. अपवर्तनांक: निर्वात में प्रकाश की चाल और किसी माध्यम में प्रकाश की चाल का अनुपात।
99. आपेक्षिक अपवर्तनांक: माध्यम 1 के सापेक्ष माध्यम 2 का अपवर्तनांक।
100. अपवर्तन के नियम: 1. आपतित किरण, अपवर्तित किरण और अभिलंब एक ही तल में होते हैं। 2. आपतन कोण की ज्या और अपवर्तन कोण की ज्या का अनुपात एक स्थिरांक होता है।
101. क्रान्तिक कोण: सघन माध्यम में वह आपतन कोण जिसके लिए विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90° होता है।
102. पूर्ण आन्तरिक परावर्तन: जब प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाता है और आपतन कोण क्रांतिक कोण से अधिक होता है, तो प्रकाश का उसी माध्यम में वापस लौटना।
103. मरीचिका: रेगिस्तान में गर्मी के दिनों में पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण दिखने वाला एक प्रकाशीय भ्रम।
104. प्रकाशिक तन्तु: पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत पर काम करने वाली एक युक्ति जो प्रकाश संकेतों को लंबी दूरी तक भेज सकती है।
105. लेन्स: दो सतहों से घिरा एक पारदर्शी माध्यम, जिसमें कम से कम एक सतह वक्र होती है।
106. लेन्स की आवर्धन क्षमता: लेंस द्वारा बने प्रतिबिम्ब की ऊँचाई और वस्तु की ऊँचाई का अनुपात।
107. लेन्स की क्षमता: लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को मोड़ने की क्षमता, जो उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
108. समतुल्य लेन्स: दो या दो से अधिक लेंसों के संयोजन के स्थान पर उपयोग किया जा सकने वाला एकल लेंस।
109. समंजन क्षमता: आंख के लेंस की अपनी फोकस दूरी को समायोजित करने की क्षमता ताकि पास और दूर की वस्तुएं स्पष्ट दिखाई दें।
110. दृष्टि दोष: आंख की सामान्य देखने की क्षमता में कमी आना।
111. निकट दृष्टि दोष: वह दोष जिसमें व्यक्ति पास की वस्तुएं तो देख सकता है लेकिन दूर की नहीं।
112. दूर दृष्टि दोष: वह दोष जिसमें व्यक्ति दूर की वस्तुएं तो देख सकता है लेकिन पास की नहीं।
113. जरा दृष्टि दोष: उम्र बढ़ने के साथ आंख की समंजन क्षमता में कमी आना।
114. अबिन्दुकता: कॉर्निया की गोलाई में अनियमितता के कारण होने वाला दोष, जिससे क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर रेखाएं एक साथ स्पष्ट नहीं दिखतीं।
115. ध्रुवण कोण: वह आपतन कोण जिस पर किसी पारदर्शी सतह से परावर्तित प्रकाश पूर्णतः समतल ध्रुवित हो जाता है।
116. आवर्धन क्षमता: किसी प्रकाशिक यंत्र द्वारा बनाए गए अंतिम प्रतिबिंब द्वारा आंख पर बने कोण और वस्तु द्वारा आंख पर बने कोण का अनुपात।
117. प्रकाशिक यंत्र: वे उपकरण जो प्रकाश के परावर्तन और अपवर्तन के सिद्धांतों का उपयोग करके वस्तुओं को देखने में मदद करते हैं।
118. सरल सूक्ष्मदर्शी: कम फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस जो छोटी वस्तुओं का आवर्धित आभासी प्रतिबिंब बनाता है।
119. खगोलीय दूरदर्शी: दूर स्थित खगोलीय पिंडों को देखने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक प्रकाशिक यंत्र।
120. प्रिज्म: दो समतल सतहों से घिरा एक समांगी पारदर्शी माध्यम जो किसी कोण पर झुके होते हैं।
121. वर्णपट: जब श्वेत प्रकाश प्रिज्म से गुजरता है, तो वह अपने सात घटक रंगों में विभाजित हो जाता है।
122. प्रकाश का वर्ण विक्षेपण: श्वेत प्रकाश का अपने घटक रंगों में विभाजित होने की घटना।
123. कोणीय वर्ण विक्षेपण: प्रिज्म से निकलने वाली किन्हीं दो रंगों की किरणों के बीच का कोण।
124. वर्ण विक्षेपण क्षमता: किसी प्रिज्म की कोणीय वर्ण विक्षेपण और माध्य विचलन के अनुपात को उसकी वर्ण विक्षेपण क्षमता कहते हैं।
125. विचलन रहित विक्षेपण: प्रिज्मों का ऐसा संयोजन जो माध्य किरण में बिना विचलन के वर्ण विक्षेपण उत्पन्न करता है।
126. विक्षेपण रहित विचलन: प्रिज्मों का ऐसा संयोजन जो वर्ण विक्षेपण के बिना प्रकाश किरण में विचलन उत्पन्न करता है।
127. प्रकाश का प्रकीर्णन: जब प्रकाश वायुमंडल में मौजूद कणों से टकराता है, तो वह सभी दिशाओं में बिखर जाता है।
128. रैले का समीकरण: इस नियम के अनुसार, प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की चौथी घात के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
129. प्राथमिक वर्ण: वे रंग (लाल, हरा, नीला) जिन्हें मिलाकर अन्य रंग बनाए जा सकते हैं।
130. द्वितीयक वर्ण: दो प्राथमिक रंगों को मिलाने से बना रंग (जैसे पीला, सियान, मैजेंटा)।
131. सम्पूरक वर्ण: वे दो रंग जिन्हें मिलाने पर श्वेत प्रकाश प्राप्त होता है।
132. कणिका सिद्धान्त: न्यूटन द्वारा दिया गया सिद्धांत, जिसके अनुसार प्रकाश छोटे-छोटे कणों (कणिकाओं) से मिलकर बना है।
133. कणिका सिद्धान्त के दोष: यह सिद्धांत व्यतिकरण, विवर्तन और ध्रुवण जैसी घटनाओं की व्याख्या नहीं कर सका।
134. हाइगेन्स का तरंग सिद्धान्त: इस सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश तरंगों के रूप में चलता है और प्रत्येक बिंदु एक नए तरंग स्रोत की तरह कार्य करता है।
135. गोलीय तरंगाग्र: जब प्रकाश स्रोत एक बिंदु स्रोत होता है, तो उससे उत्पन्न तरंगाग्र गोलीय होता है।
136. बेलनाकार तरंगाग्र: जब प्रकाश स्रोत एक रेखीय स्रोत होता है, तो उससे उत्पन्न तरंगाग्र बेलनाकार होता है।
137. समतल तरंगाग्र: जब प्रकाश स्रोत बहुत दूर होता है, तो तरंगाग्र लगभग समतल होता है।
138. व्यतिकरण: जब समान आवृत्ति की दो प्रकाश तरंगें एक ही दिशा में चलती हैं, तो उनके अध्यारोपण से प्रकाश की तीव्रता में परिवर्तन होता है।
139. संपोषी व्यतिकरण: जब तरंगें समान कला में मिलती हैं, तो परिणामी तीव्रता अधिकतम होती है।
140. विनाशी व्यतिकरण: जब तरंगें विपरीत कला में मिलती हैं, तो परिणामी तीव्रता न्यूनतम होती है।
141. कलान्तर: दो तरंगों के दोलन की कलाओं में अंतर।
142. पथान्तर: दो तरंगों द्वारा तय किए गए पथों की लंबाई में अंतर।
143. कला संबद्ध स्रोत: वे प्रकाश स्रोत जिनसे निकलने वाली तरंगों के बीच कलान्तर समय के साथ स्थिर रहता है।
144. यंग का प्रयोग: प्रकाश के व्यतिकरण को दर्शाने वाला प्रसिद्ध द्वि-स्लिट प्रयोग।
145. विवर्तन: जब प्रकाश तरंगें किसी छोटे अवरोध या छिद्र के किनारों से टकराती हैं, तो उनका मुड़ जाना।
146. फ़्रेंनेल का विवर्तन: जब प्रकाश स्रोत और पर्दा अवरोध से एक सीमित दूरी पर होते हैं।
147. फ़्राउनहोफर का विवर्तन: जब प्रकाश स्रोत और पर्दा अवरोध से प्रभावी रूप से अनंत दूरी पर होते हैं।
148. तरंग: ऊर्जा का संचरण जो माध्यम में विक्षोभ के कारण होता है।
149. अनुदैर्ध्य तरंग: वह तरंग जिसमें माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा में कंपन करते हैं (जैसे ध्वनि तरंग)।
150. अनुप्रस्थ तरंग: वह तरंग जिसमें माध्यम के कण तरंग संचरण की दिशा के लंबवत कंपन करते हैं (जैसे प्रकाश तरंग)।
151. टुर्मेलिन क्रिस्टल: एक प्राकृतिक क्रिस्टल जो प्रकाश के ध्रुवण के लिए उपयोग होता है।
152. ध्रुवित प्रकाश: वह प्रकाश जिसमें विद्युत वेक्टर के कंपन एक ही तल में सीमित होते हैं।
153. अध्रुवित प्रकाश: वह प्रकाश जिसमें विद्युत वेक्टर के कंपन सभी संभव तलों में होते हैं।
154. ध्रुवण: वह घटना जो प्रकाश की अनुप्रस्थ प्रकृति को सिद्ध करती है।
155. ब्रूस्टर का नियम: इस नियम के अनुसार, ध्रुवण कोण पर अपवर्तनांक (n) उस कोण की स्पर्शज्या (tan) के बराबर होता है।
156. पोलेरॉइड: अध्रुवित प्रकाश से समतल ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक कृत्रिम युक्ति।
157. प्रत्यावर्ती वोल्टता: वह वोल्टेज जिसका परिमाण और दिशा समय के साथ आवर्ती रूप से बदलते रहते हैं।
158. परमाणु: किसी तत्व का वह सूक्ष्मतम कण जो रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेता है।
159. थॉमसन का परमाणु मॉडल: इस मॉडल के अनुसार, परमाणु एक धनावेशित गोला है जिसमें इलेक्ट्रॉन तरबूज के बीजों की तरह धंसे होते हैं।
160. ठोस: पदार्थ की वह अवस्था जिसका आकार और आयतन दोनों निश्चित होते हैं।
161. रदरफ़ोर्ड का कण प्रकीर्णन प्रयोग: अल्फा कणों के प्रकीर्णन पर आधारित प्रयोग जिससे परमाणु के नाभिक की खोज हुई।
162. नील्स बोर का परमाणु मॉडल: इस मॉडल के अनुसार, इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही घूम सकते हैं।
163. ऊर्जा स्तर: परमाणु में वे निश्चित कक्षाएँ जिनमें इलेक्ट्रॉन बिना ऊर्जा उत्सर्जित किए घूम सकते हैं।
164. आयनन विभव: किसी परमाणु से एक इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा।
165. विकिरण ऊर्जा स्तर: इलेक्ट्रॉन के उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर में आने पर उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा।
166. उत्सर्जन संक्रमण: जब कोई इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर में आता है, तो वह ऊर्जा का उत्सर्जन करता है।
167. अवशोषण संक्रमण: जब कोई इलेक्ट्रॉन ऊर्जा अवशोषित करके निम्न ऊर्जा स्तर से उच्च ऊर्जा स्तर में जाता है।
168. हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम: उत्तेजित हाइड्रोजन परमाणु से उत्सर्जित विकिरण का स्पेक्ट्रम, जिसमें कई श्रेणियां होती हैं।
169. लाइमन श्रेणी: हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की वह श्रृंखला जिसमें इलेक्ट्रॉन किसी उच्च ऊर्जा स्तर से पहले ऊर्जा स्तर (n=1) में आते हैं।
170. बामर श्रेणी: हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की वह श्रृंखला जिसमें इलेक्ट्रॉन किसी उच्च ऊर्जा स्तर से दूसरे ऊर्जा स्तर (n=2) में आते हैं।
171. पाशन श्रेणी: हाइड्रोजन स्पेक्ट्रम की वह श्रृंखला जिसमें इलेक्ट्रॉन किसी उच्च ऊर्जा स्तर से तीसरे ऊर्जा स्तर (n=3) में आते हैं।

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